कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को अक्षय नवमी में रूप में मनाया जाता है। इस पर्व को मनाने वाले लोग भगवान विष्णु के प्रतीक आंवला पेड़ की पूजा करते हैं और परिवार की सुख समृद्धि की कामना करते हैं। अक्षय नवमी की पूजा आवंले के पेड़ से जुड़ी होने के कारण इस आंवला नवमी भी कहा जाता है। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने का विशेष महत्व है।
उत्तर भारत के कई इलाकों आज के दिन लोग सबसे अच्छा और अपना पसंदीदा पकवान बनाकर आवंले के पेड़ के नीचे जाते हैं और पूजा के बाद सपरिवार आंवले के नीचे प्रसाद ग्रहण करते हैं। आवंले में बहुत सी बीमारियों से लड़ने की ताकत होती है, आंवले के नीचे भोजन करने से बीमारियों छुटकारा मिलता है और शरीर स्वस्थ रहता है।
आंवला पेड़ पूजा का महत्व-
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जो लोग अक्षय नवमी के दिन आंवला वृक्ष का पूजन करते हैं उन पर लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं और मनोकामना पूर्ण करती हैं। कहा जाता है कि आंवले के पेड़ में भगवान विष्णु का वास होता है लेकिन अक्षय नवमी के दिन इसमें सभी देवी देवता विराजते हैं। यानी अक्षय नवमी के दिन आंवले के पेड़ के पूजन से सभी देवी देवताओं की पूजा के बराबर पुण्य प्राप्त होता है।
अक्षय नवमी पूजा विधि-
प्रात: स्नान करने के बाद आवंले के पेड़ के आसपास सफाई करनी चाहिए।
इसके बाद आंवले के पेड़ पर जल चढ़ाना चाहिए।
इसके बाद फूल, हल्दी-चावल, कुमकुम/सिंदूर, से पूजा करना चाहिए।
आंवले के पेड़ के नीचे घी का दीपक जलाना चाहिए और हवन आदि करना चाहिए।
इसके बाद आंवले के पेड़ की 7 बार परीक्रमा करनी चाहिए।
परिक्रम पूरी होने के बाद लोगों को प्रसाद बांटना चाहिए और आवंले के पेड़ के नीचे भोजन करना चाहिए।