छत्तीसगढ़ में बिजली कंपनियों के एकीकरण की मांग जोर पकड़ने लगी है। इसी कड़ी में कंपनी के इंजीनियरों ने मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर एक कंपनी बनाने की मांग की है। इंजीनियरों के अनुसार एक तरफ उत्पादन और पारेषण कंपनियों को कागज पर मुनाफा हो रहा है और वे आयकर जमा कर रही हैं। वहीं, दूसरी तरफ वितरण कंपनी लगातार घाटे में जा रही है। यानी कंपनियां घाटे का सौदा है। एक कंपनी होने की स्थिति में ऐसा नहीं होगा। वितरण कंपनी के घाटे की पूर्ति हो जाएगी। बिजली इंजीनियरों के अनुसार कंपनियों के एकीकरण से न केवल उपभोक्ता बल्कि सरकार को भी फायदा होगा।
केरल और हिमाचल में है एकीकृत व्यवस्था
अखिल भारतीय बिजली अभियंता महासंघ के अध्यक्ष शैलेंद्र दुबे ने सीएम को लिखे पत्र में बताया है कि बिजली बोर्ड का विखंडन किया जाना कोई वैधानिक बाध्यता नहीं थी फिर भी छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों में राज्य बिजली बोर्ड का विखंडन कर कई बिजली कंपनियों का गठन किया गया। केरल व हिमाचल प्रदेश में एकीकृत कंपनी के रूप में बिजली बोर्ड का स्वरूप बनाया रखा गया।
एकीकरण के पक्ष में इंजीनियरों का तर्क
– सभी राज्यों में एक राज्य भार प्रेषण केंद्र (एसएलडीसी) कार्यरत है जिसका कार्यक्षेत्र पूरे राज्य में होता है। एकीकृत व्यवस्था में राज्य भार प्रेषण केंद्र को बिजली मांग में उतार चढ़ाव होने पर उत्पादन व पारेषण से वितरण व्यवस्था का सामंजस्य स्थापित करना सुगम होता है।
– मानव संसाधनों का प्रयोग एकीकृत व्यवस्था में ज्यादा बेहतर तरीके से करना संभव होता है जिससे न केवल खर्चों में कटौती संभव होती है बल्कि कार्यदक्षता भी बढ़ती है।
– राज्य विद्युत नियामक आयोग/अपीलेट ट्रिब्यूनल फॉर इलेक्ट्रीसिटी (एपटेल) के समक्ष नियामन से संबंधित विषयों के प्रस्तुतीकरण में व्यवहारिक रूप से एकजाई व्यवस्था ज्यादा प्रभावी होती है कई कंपनियों होने पर कभी- कभी अनावश्यक रूप से ही कंपनियों के बीच में ही मुद्दों के निर्धारण में जटिलता एवं विवाद उत्पन्न् होने लगते है।