छत्तीसगढ़ और झारखंड के बीच बनेगा टाइगर कॉरिडोर

छत्तीसगढ़ और झारखंड के के बीच टाइगर कॉरिडोर बनाया जाएगा। वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन विभाग झारखंड ने यह निर्णय लिया है। कॉरिडोर के अध्ययन की जिम्मेदारी भारतीय वन्यजीव संस्थान (देहरादून) को जल्द सौंपी जाएगी।

झारखंड, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के जंगल आपस में जुड़े हैं। इस क्षेत्र में 25 हजार वर्ग किलोमीटर में फैला मध्य भारत का सबसे विशाल बाघ पर्यावास मौजूद है। जंगल में वर्चस्व की लड़ाई में पराजित बाघ दूसरे क्षेत्र में जाते हैं। प्रजनन के लिए भी अक्षुण्ण वातावरण की तलाश में बाघ स्थान बदलते हैं। कई बार भटक जाने पर बाघ 300 किलोमीटर दूर तक चले जाते हैं। अपना क्षेत्र विस्तार करने के लिए भी बाघ स्थान परिवर्तन करते हैं। पलामू बाघ अभयारण्य (पीटीआर) के निदेशक वाईके दास के अनुसार इन सभी क्रियाओं में बाघों को सहूलियत हो, वह अपनी संख्या बढ़ा सकें और अपने लिए सुरक्षित पर्यावास ढूंढ़ सकें। इसी उद्देश्य से टाइगर कॉरिडोर के विकास की योजना बनाई गई है।

पीटीआर से अचानकमार के रास्ते बनेगा टाइगर कॉरिडोर
पलामू बाघ अभयारण्य (पीटीआर) से मध्य प्रदेश का संजय राष्ट्रीय उद्यान जुड़ता है। इसी क्षेत्र में संजय-डुबरी टाइगर रिजर्व है, जो कान्हा राष्ट्रीय उद्यान और बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान तक फैला हुआ है। पहाड़ी और घने जंगल वाले इस क्षेत्र का फैलाव छत्तीसगढ़ के अचानकमार टाइगर रिजर्व और गुरु घासीदास बाघ अभयारण्य तक है। पीटीआर का क्षेत्र लावालौंग, गौतमबुद्धा, कोडरमा और हजारीबाग अभयारण्य से सटा हुआ है। दक्षिण में सिमडेगा, पालकोट होते हुए ओडिशा के सारंडा जंगल तक जंगल आपस में जुड़े हैं।

इस प्रकार 25 हजार वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र बाघों का वास स्थान बनता है। पीटीआर से बूढ़ा पहाड़ होते हुए छत्तीसगढ़ के बीच अचानकमार राष्ट्रीय उद्यान, संजय-डुबरी टाइगर रिजर्व के रास्ते टाइगर कॉरिडोर बनाने की तैयारी शुरू हुई है।

वन्यजीव संस्थान से ली जाएगी मदद
टाइगर कॉरिडोर के लिए भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून से मदद ली जाएगी। छत्तीसगढ़ सरकार से भी समन्वय किया जा रहा है।  बाघों का हर स्तर पर संरक्षण जरूरी है।
-पीके वर्मा, प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *