गोवर्धन पूजा हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को की जाती है। गोवर्धन पूजा के दिन हर कृष्ण भक्त की यह इच्छा होती है कि वो गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करके भगवान श्री कृष्ण का आशीर्वाद ग्रहण कर लें। गोवर्धन पर्वत को गिरिराज पर्वत भी कहा जाता है।
गोवर्धन पर्वत के श्राप की कहानी-
दरअसल एक बार पुलस्त्य नाम के एक ऋषि इस पर्वत की खूबसूरती से इतने प्रभावित हो गए कि वो इसे द्रोणांचल पर्वत से उठाकर अपने साथ ले जाना चाहते थे। ऋषि पुलस्त्य की ऐसी इच्छा जानकर गोवर्धन जी ने पुलस्त्य ऋषि से कहा अगर आप मुझे ले जाना चाहते हैं तो ले जा सकते हैं लेकिन आप पहली बार मुझे जिस स्थान पर भी रख देंगे मैं वहीं स्थापित हो जाउंगा।
गोवर्धन जी की इस बात को सुनकर ऋषि पुलस्त्य सहमत हो गए। लेकिन बीच रास्ते में जब ऋषि पुलस्त्य की साधना का समय हुआ तो उन्होंने पर्वत को नीचे रख दिया। उनके ऐसा करते ही पर्वत वहीं स्थापित हो गया। जिसके बाद ऋषि पुलस्त्य को उसे हिलाना तक भारी लगने लगा। जिससे केरोधित होकर उन्होंने गोवर्धन पर्वत को श्राप देते हुए कहा कि यह पर्वत हर दिन आकार में घटता जाएगा।