Edited By: Dhanesh Diwakar
चाइनीज़ एप्लिकेशन टिक टॉक, इंडिया समेत अमेरिका और यूरोप तक में फैल चुका है. सितंबर 2016 में लॉन्च हुआ ये ऐप चीन में डोयीन के नाम से जाना जाता है. 2017 में 17 मिलियन (1 करोड़ सत्तर लाख) और 2018 में 45 मिलियन ( 4 करोड़ 50 लाख) यूज़र्स से बढ़ते हुए अब 1 बिलियन यूज़र्स (1 अरब) होने का दावा किया जा रहा है.
मैट्रिक्स फिल्म की तरह टिक टॉक मशीनों की दुनिया में इंसानों के प्रवेश की तरह है. यहां सब कुछ है और फ्री है और वीडियो बनाने के लिए हर तरह की आसान सुविधा है. साउंड खोजना हो, एडिटिंग करनी हो, वीडियो, गाने या कुछ भी खोजना हो सब आसानी से उपलब्ध है. इसके लिए किसी ट्रेनिंग की आवश्यकता नहीं है. आप अपने वीडियोज़ जैसे चाहें बना सकते हैं. वीडियोज़ देखने के लिए टैप करने की ज़रूरत नहीं है.
यही वजह है कि इंडिया से ही बूढ़े, बूढ़ियां, गांव के लोग, मज़दूर, नौकरीपेशा, छात्र या सेलिब्रिटीज़ सब टिकटॉक पर नज़र आते हैं. टीवी पर गंभीर रोल करनेवाले लोग टिकटॉक पर छोटे बच्चों की तरह एक्ट करते हैं. यहां तक कि लोगों ने अब अपने छोटे छोटे बच्चों और पालतू पशुओं जैसे कुत्ते– बिल्लियों के साथ भी वीडियोज़ बनाना शुरू कर दिया है.
टिक टॉक की पहुंच लोगों के घर के अंदर तक है. वीडियोज़ बेडरूम, टॉयलेट, छत, कोठरी हर जगह बनाये जा रहे हैं. अगर टिक टॉक चाहे तो किसी देश की जनता का पूरा रहन–सहन पता करा सकता है, जनगणना भी करा सकता है. सामाजिक–आर्थिक सूचकांक भी निकाल सकता है इन वीडियोज़ के आधार पर. लोगों का डाटा इनके साथ सुरक्षित नहीं है. फेसबुक, ट्विटर इत्यादि पर भी ये आरोप लगते रहते हैं. तो टिकटॉक भी इन आरोपों से परे नहीं है.