देव प्रबोधिनी एकादशी पर बना बेहद शुभ संयोग, व्रतियों को दोगुना लाभ

कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवप्रबोधिनी एकादशी और देव उठानी एकादशी के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आषाढ मास की शुक्ल पक्ष की एकदशी यानी देव शयनी के दिन भगवान विष्णु सो जाते हैं। इसके बाद देव प्रबोधिनी यानी कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष एकादशी को चार महीने बाद भगवान जगते हैं। भगवान के जगने से सृष्टि में तमाम सकारात्मक शक्तियों का संचार होने लगता है। इस दिन भगवान के जगने का उत्सव देवतागण भी व्रत पूजन द्वारा मनाते हैं।

देव उठनी एकादशी व्रत मुहूर्त

इस वर्ष देव प्रबोधिनी यानी देव उठनी एकादशी दो दिन लग रही है। ऐसे में व्रत की सही तिथि कौन सी है इस विषय में शास्त्रों का मत है कि जिस दिन सूर्योदय कालीन एकादशी तिथि हो और वह दो प्रहर तक लग रही हो उसी दिन एकादशी का व्रत करना चाहिए। शास्त्र के इस मत के अनुसार इस वर्ष 8 नवंबर को देव उठनी एकादशी का व्रत रखना शास्त्र सम्मत होगा। इसकी वजह यह है कि 8 नवंबर को एकादशी तिथि में सूर्योदय होगा और 12 बजकर 55 मिनट तक एकादशी तिथि रहेगी इसके बाद द्वादशी आरंभ हो जाएगी

देव उठनी एकादशी का पारण

इस एकादशी व्रत का पारण शनिवार 9 नवंबर को सूर्योदय के बाद से ही किया जा सकता है। द्वादशी तिथि 2 बजकर 40 मिनट तक रहेगी। एकादशी व्रत करने वाले को द्वादशी के दिन भी व्रत के कुछ नियमों का पालन करना होता है जिनमें एक नियम यह है व्रती को द्वादशी के रोज दिन में नहीं सोना चाहिए। अगर नींद आ ही जाए तो सिरहाने में एक तुलसी का पत्ता जरूर रख लेना चाहिए।

एक व्रत के साथ दोगुना लाभ

इस वर्ष एकादशी पर बड़ा ही शुभ संयोग बना है। एकादशी शुक्रवार के दिन है। इस दिन की स्वामिनी विष्णु प्रिया देवी लक्ष्मी हैं। इस दिन व्रत करने से एक साथ लक्ष्मी और नारायण के व्रत का फल व्रतियों को प्राप्त होगा। जो व्रती वैभव लक्ष्मी व्रत करते हैं उनके लिए अच्छी बात यह है कि उन्हें एक साथ दो व्रत का लाभ मिलेगा।

एकादशी के साथ यह शुभ योग भी

इस संयोग के साथ देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन यानी 8 नवंबर को जब तक एकादशी तिथि रहेगी तब तक रवि नामक शुभ योग भी उपस्थित होगा। इस शुभ संयोग में कोई भी शुभ काम का आरंभ किया जा सकता है।

एकादशी की रात ऐसे जलाएं दीप

मोक्ष के साथ धन लक्ष्मी की कामना रखने वाले को देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन भी दिवाली की तरह घर को साफ रखना चाहिए और पूरी रात पूजा घर में लक्ष्मी नारायण के सामने अखंड दीप जलाना चाहिए। देव प्रबोधिनी की रात भी दिवाली की रात घर के आस-पास दीप जलाना चाहिए। 

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