निर्भया के दोषियों को फांसी तक पहुंचाने वाली वकील सीमा कुशवाहा का यह पहला केस था और उन्होंने सात साल तक चले इस केस के लिए कोई पैसा नहीं लिया। इतना ही नहीं वह निर्भया के माता-पिता की ओर से दोषियों के पक्ष पर हमेशा हमलावर रहीं और आखिरकार उन्होंने इस लड़ाई में जीत हासिल कर ली।
सीमा कुशवाहा ने बताया कि निर्भया के साथ हुई दरिंदगी के बाद ही उन्होंने पीड़ित परिवार की लड़ाई निशुल्क लड़ने का प्रण लिया था। सात सालों की लड़ाई में उन्होंने साकेत की फास्ट ट्रैक कोर्ट, पटियाला हाउस कोर्ट, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट, हर पड़ाव में निर्भया का पक्ष पेश किया। उन्होंने बताया कि यह केस उनके जीवन ऐसा केस है जिसे देश और दुनिया हमेशा याद रखेगी। उन्होंने कहा कि उन्हें बेहद खुशी है कि इस लड़ाई में उन्हें जीत मिली और निर्भया के परिवार को न्याय मिला।
उन्होंने बताया कि केस में फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई की मांग नहीं करती तो इस केस के समाप्त होने में और भी ज्यादा समय लगता। बताया कि जिस जगह से वह संबंध रखती हैं, वहां भी लड़कियों को शहरों की तरह आजादी नहीं दी जाती, इसलिए उन्होंने अपनी इस लड़ाई को जीतकर अपने घर, रिश्तेदारों व समाज को भी यह संदेश दिया है कि लड़कियां किसी से कम नहीं हैं।
आईएएस बनना चाहती थीं, लेकिन वकील बनीं
वह मूल रूप से उत्तर प्रदेश की रहने वाली हैं और उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से वकालत की पढ़ाई की है। उनका कहना है कि वह आईएएस बनना चाहती थीं, लेकिन वकील बनीं। निर्भया का केस लड़ने पर उन्हें खुद पर गर्व है कि उन्होंने वकील बनने का फैसला किया। जिस वक्त निर्भया के साथ यह घटना हुई तब वह वकालत की प्रैक्टिस कर रही थीं और तभी उन्होंने सोचा था कि वह इस केस को हर हाल में जीतकर ही रहेंगी।
वर्तमान में सीमा सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिसिंग अधिवक्ता हैं। उनका कहना है कि निर्भया का केस लड़ना उनके लिए भी एक बड़ी चुनौती थी। इस लड़ाई के दौरान निर्भया के परिवार के साथ और खासकर उसकी मां के साथ उनका एक भावनात्मक संबंध बन गया है।