Edited By : Dhanesh Diwakar
छत्तीसगढ़ की राजधानी के विकास के लिए न जाने कितने पीपल, बरगद, नीम, आम, बेल समेत छायादार पेड़ों की बलि दे दी गई। बहुमंजिली इमारतों, आलीशान कॉलोनियों, चमचमाती सड़कों के चौड़ीकरण के लिए कितने ही हरे-भरे पेड़ नदारद हो गए। शहर में मुख्य मार्गों पर कई पेड़ों को काटे जाने का दर्द अभी भी लोगों को कचोटता है।
इसके विपरीत राजधानी के पुरानी बस्ती इलाके में कुछ विशाल बरगद के वृक्ष 150 साल से भी अधिक सालों से आज भी सीना ताने खड़े हैं। ये बरगद के पेड़ पूरे इलाके के लोगों के लिए संजीवनी का काम कर रहे हैं। आसपास के सैकड़ों घरों का वातावरण ठंडा रहता है। ठेला वाले, रिक्शा वाले और पैदल चलते राहगीर अपनी थकान मिटाने कुछ देर के लिए आश्रय लेते हैं और थकान मिटने के बाद फिर अपनी मंजिल की ओर बढ़ जाते हैं।यह पेड़ महिलाओं की आस्था का केन्द्र है, जिसके नीचे साल में एक दिन हजारों महिलाएं पूजा-परिक्रमा करके पति की लंबी आयु की दुआ मांगने आती हैं।
टुरी हटरी में 150 साल से छाया दे रहा वट वृक्ष
पुरानी बस्ती का मशहूर टूरी हटरी इलाके में 150 साल से अधिक पुराना वट वृक्ष (बरगद) आस्था का केन्द्र बिन्दु है। पेड़ के नीचे बैठकर कई दुकानदार अपनी रोजी-रोटी चला रहे हैं। सब्जी, किराना से लेकर मनिहारी सामान बेचने वाली अनेक महिलाओं के लिए यह पेड़ वरदान साबित हो रहा है। पक्के दुकानदारों को जहां अपनी दुकान में कूलर चलाना पड़ता है, वहीं पेड़ के नीचे बैठकर व्यवसाय करने वाली महिलाओं को गर्मी का अहसास भी नहीं होता। ये लोग ठंडी हवा के साथ शीतल छांव का आनंद लेते हैं। पेड़ के ठीक सामने स्थित धूप से बचने और ठंडी हवा तथा शीतल छांव लेने लोग कई लोग पेड़ के नीचे ही पनाह लेते हैं।
बूढ़ेश्वर मंदिर तिराहा का वट वृक्ष दे रहा सुकून
ऐतिहासिक बूढ़ा तालाब के समीप बूढ़ेश्वर मंदिर के ठीक सामने स्थित तिराहा पर 125 साल से वट वृक्ष भक्तों की आस्था का प्रतीक है। हर साल ज्येष्ठ अमावस्या और पूर्णिमा पर सैकड़ों महिलाएं अपने पति की लंबी आयु की कामना को लेकर वट वृक्ष के नीचे पूजा करने पहुंचती हैं।यह वट वृक्ष बूढ़ेश्वर तिराहे की शान हैं। थकान से चूर पथिक और रिक्शा चालक, मजदूर यहां प्रतिदिन अपनी थकान मिटाते दिखाई देते हैं। पं.महेश शर्मा बताते हैं कि वे बचपन से इस पेड़ के प्रति महिलाओं की आस्था देख रहे हैं। पेड़ की वजह से तीन तरफ जाने वाले मार्ग का यातायात आसान हो गया है।
कई पीढ़ियां पेड़ के नीचे ले चुकीं छांव के लिए पनाह
करीब ही मटका और मिट्टी के बर्तन बेचने का व्यवसाय करने वाली महिलाओं ने बताया कि उनकी कई पीढ़ियां वट वृक्ष के सामने मटका बेचने का व्यवसाय करते आई हैं। दोपहर को जब धूप असहनीय हो जाती है तो इस पेड़ के नीचे आकर ठंडक तलाशती हैं। वट वृक्ष के नीचे बैठने से उन्हें तेज गर्मी का तनिक भी पता नहीं चलता। इसी तरह अनेक रिक्शा वाले, ठेला चलाने वाले, आसपास के दुकानदार भी तेज धूप से बचने पनाह लेते हैं।
वट सावित्री पूजा करने उमड़ेंगी महिलाएं
अखंड सुहाग के प्रतीक के रूप में मनाया जाने वाला ‘वट सावित्री’ पर्व तीन जून को ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाएगा। इस दिन सुहागिनें 16 श्रृंगार करके अपने पति की लंबी आयु एवं अखंड सौभाग्यवती की कामना करते हुए व्रत रखेंगी और वट-वृक्ष (बरगद) की पूजा-अर्चना करेंगी।