नई प्रणाली से वोटों की गिनती में लगेंगे कम लोग, प्रेक्षकों की भी दरकार नहीं

कर्मचारियों के मानदेय में ही दस लाख रुपए बचेंगे

प्रत्यक्ष विधि से चुनाव की स्थिति में राज्य निर्वाचन आयोग को औसतन दस से तीस लाख रुपए का खर्च भी बचेगा। नगरीय निकायों के 3217 पार्षदों और वार्ड मेंबरों के चुनाव के लिए पचास लाख से भी ज्यादा वोटरों के लिए बैलेट पेपरों की छपाई होगी। इसमें प्रत्याशियों के चुनाव लड़ने की संख्या के आधार पर बैलेट का आकार तय होगा। आम तौर पर एक बैलेट पेपर की छपाई में 5 रुपए न्यूनतम से अधिकतम 250 रुपए तक का खर्च होने का अनुमान है। हालांकि राज्य निर्वाचन आयोग के पास डबल वोटिंग वाली कुल 10 हजार कंट्रोल यूनिट और 20 हजार बैलेट यूनिट हैं। एक ईवीएम की औसत लागत 12 से 15 हजार रुपए के बीच है। इस तरह लगभग 25 करोड़ रुपए की ईवीएम मशीनें इस बार इस्तेमाल नहीं होंगी।
कुछ खर्च पहले से कम, कुछ वैसे ही 
आयोग विधानसभा व लोकसभा चुनाव की तरह मतदाताओं के घरों तक पर्चियां नहीं पहुंचाता है। इस मद के बीस लाख रुपए स्वभाविक रूप से बच जाते हैं। अमिट स्याही में नगरीय व ग्रामीण चुनाव को मिलाकर 65 लाख की अमिट स्याही खर्च होगी।

 

ये खर्च अनुमानित 

25 से 30 लाख रुपए      व्यय प्रेक्षकों का खर्च (ट्रेनिंग से लेकर चुनाव के दौरान गाड़ियों से घूमने वगैरह का)

10 से 30 लाख रुपए       ईवीएम के लिए तकनीकी सलाह ट्रेनिंग

10 से 50 लाख करीब      सुरक्षा बलों की तैनाती

10 से 50 लाख रुपए       वाहनों पर होने वाला अतिरिक्त खर्च

10 से 50 लाख रुपए       चुनाव संचालन से जुड़े विविध खर्च
 

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