31 दिसंबर को पैदा होने वाला बच्चा 1 जनवरी को दो साल का हो जाता है… जानिए कैसे…?

दक्षिण कोरिया दुनिया का ऐसा देश है जहां उम्र गिनने के लिए गलत परंपरा का इस्तेमाल होता आया है। यहां अगर कोई बच्चा 31 दिसंबर को पैदा हो जाए तो वह एक जनवरी को दो साल का हो जाता है। लेकिन अब यहां की सरकार इस परंपरा को खत्म करने जा रही है। उम्र गिनने की इस परंपरा का काफी विरोध किया गया। अब इस परंपरा को खत्म करने के लिए संसद में प्रस्ताव लाया जाएगा।

इस परंपरा का एक ताजा उदाहरण है यहां रहने वाली ली डॉन्ग किल का। किल दक्षिण कोरिया के देइजिओन शहर की रहने वाली हैं। उनकी बच्ची का जन्म 31 दिसंबर को हुआ था।ऐसे में उस दिन रिश्तेदारों और दोस्तों से बधाई मिलना लाजमी है। लेकिन उन्हें अगले दिन यानी एक जनवरी को भी बधाइयां मिलने लगीं। ऐसा इसलिए क्योंकि जन्म के अगले दिन ही उनकी बच्ची दो साल की हो गई।

ऐसे होती है उम्र की गणना
दक्षिण कोरिया में बच्चे की उम्र की गणना करने का ये तरीका यहां की संस्कृति का ही एक हिस्सा है। यहां जब कोई बच्चा पैदा होता है तो उसे एक साल का माना जाता है। वहीं उस बच्चे की उम्र उसके जन्मदिन वाले दिन नहीं बल्कि हर नए साल के दिन बढ़ती है। ठीक ऐसा ही होता है 31 दिसंबर को पैदा होने वाले बच्चे के साथ। पैदा होने के अगले दिन ही वो बच्चा दो साल का हो जाता है। यही कारण है कि कोरियाई व्यक्ति की घोषित उम्र, पश्चिमी परंपरा में बताई जाने वाली उसकी उम्र से एक या दो साल ज्यादा हो जाती है। यहां के लोग इस तरह की गणना से छुटकारा पाना चाहते हैं और वैश्विक स्तर पर लागू एक तरीके से उम्र की गिनती चाहते हैं। अभी उन्हें दो उम्र के साथ जीना पड़ रहा है।

किस देश से हुई थी शुरुआत
उम्र गिनने के इस तरीके की शुरुआत चीन से हुई थी। लेकिन बाद में इसका इस्तेमाल कोरिया में भी होने लगा। वैसे तो कोरियाई लोग अपनी परंपराओं को काफी महत्व देते हैं, लेकिन इस परंपरा का वो विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि ये पुरानी परंपरा उनका समय बर्बाद कर रही है। कोरियाई लोग इस परंपरा को खत्म कर एक वैश्विक सिस्टम चाहते हैं। कोरियाई सांसद ह्वांग जू हांग का इस मामले में कहना है कि वह संसद में जल्द ही एक संशोधन प्रस्ताव लेकर आ रहे हैं। इस संशोधन में उम्र गिनने की पुरानी परंपरा को खत्म किया जाएगा।

इन देशों में खत्म हो चुकी है परंपरा
ये परंपरा पूर्वी एशियाई देशों चीन और जापान में भी थी। लेकिन इसे बाद में खत्म कर दिया गया। केवल कोरिया ही है जो इस परंपरा का आज भी इस्तेमाल कर रहा है। अब माना जा रहा है कि अगले महीने संसद में लाए जा रहे प्रस्ताव से ये परंपरा खत्म हो जाएगी।

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