लगभग पचास साल बाद दिवाली पर रविवार को लक्ष्मी योग बन रहे हैं। विद्या, बुद्धि, विवेक, धन, धान्य, सुख, शांति और समृद्धि के मंगलयोग के बीच देवी भगवती का आगमन होगा। सायंकालीन दिवाली पूजन के लिए इस बार डेढ़ घंटा प्राप्त होगा लेकिन दिन में कारोबारी दृष्टि से दिवाली पूजन के कई मुहूर्त हैं।
अपने कुल के साथ लक्ष्मी का आगमन-
कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या अर्थात दिवाली लक्ष्मी जी का प्राकट्य दिवस है। वह श्रीनारायण के साथ पृथ्वी पर आती हैं। उनके साथ उनका पूरा कुल होता है। यानी समस्त देवी, देवता, ग्रह, नक्षत्र। यही ऐसा पर्व है, जब त्रिदेवियां और त्रिदेव अपने कुल के साथ पृथ्वी पर आते हैं। सबसे अंत में महानिशाकाल में काली कुल आता है। इसलिए इसको सबसे बड़े पर्व की संज्ञा दी गई है। पांच पर्वों की श्रृंखला का यह तीसरा पर्व है। इस अमावस्या को सबसे बड़ी अहोरात्रि कहा गया है।
पूजन महत्व और स्थिर लग्न-
दिवाली पूजन में स्थिर लग्न का महत्व होता है। शुभ कार्यों के लिए स्थिर लग्न ही सर्वश्रेष्ठ होता है। स्थिर लग्न में पूजा करने से लक्ष्मी जी का स्थायी वास होता है। दरिद्रता की समाप्ति होती है।
अमावस्या दो दिन-
दिवाली पूजन के समय चन्द्रमा का तुला राशि में प्रवेश हो जायेगा और शुक्र पहले से ही तुला राशि में है। ज्योतिष में इसे लक्ष्मी योग कहते हैं। धन, समृद्धि और ऐश्वर्य प्रदान करने वाला लक्ष्मी योग पचास साल बाद आ रहा है। अमावस्या भी दो दिन रहेगी। काफी समय बाद धन त्र्योदशी, रूप चतुर्दशी और कार्तिक अमावस्या ( तीनों ही पर्व) दो दिन के रहे हैं।
घरों और व्यावसायिक स्थलों पर पूजन मुहूर्त-
फैक्टरी और कारखाने में पूजन : 27 अक्तूबर को सुबह 8 से 10.30 (स्थिर लग्न वृश्चिक) और अपराह्न 2.10 से 3.40 बजे तक (स्थिर लग्न कुंभ)
अमावस्या प्रारम्भ : 27 अक्तूबर दोपहर 12.33 बजे से
अमावस्या समाप्त : 28 अक्तूबर को प्रात: 09.08 बजे
प्रदोषकाल: शाम 5.36 से रात 8.11 बजे तक
दुकानों में पूजन का समय (खाता-बही)-
-सायं 6.40 से सायं 8.40 बजे तक
घरों में लक्ष्मी पूजा मुहूर्त
27 अक्तूबर को लक्ष्मी पूजा वृष स्थिर लग्न सायं में 6:45 बजे से 8:41 बजे तक।
दो विशेष मुहूर्त
-सायं 6.42 से 8.37 बजे तक ( वृषभकाल) ’ प्रात: 10.26 से दोपहर 12.32 बजे तक (धनु लग्न)
महानिशा पूजन (काली)
मध्यरात्रि उपरांत 1.15 से 3.25 बजे तक (सिंह लग्न)
(ज्योतिषाचार्य विभोर इंदुसुत, पंडित विष्णु दत्त शास्त्री, पंडित सुरेंद्र शर्मा, पंडित आनंद झा)
पूजन कैसे करें-
’ लक्ष्मी जी की अकेले पूजा नहीं करनी चाहिए वरन श्रीनारायण के साथ करें
’ लक्ष्मी जी की पूजा उनके गरुड़ पर सवारी का ध्यान करके करें
इस क्रम में करें पूजा-
सर्वप्रथम गुरु ध्यान, गणपति, शिव, श्रीनारायण, देवी लक्ष्मी, श्रीसरस्वती, मां काली, समस्त ग्रह, कुबेर, यम और शांति मंत्र।
व्यापारी वर्ग यह करें-
व्यापार वृद्धि के लिए 5 कौड़ी 5 कमलगट्टे देवी को अर्पित करें।
क्या करें-
लक्ष्मी जी को अनार और कमल पुष्प अवश्य चढाएं
यह पाठ करें-
कनकधारा, देवी सूक्तम ( 5 या 11 बार), श्रीसुक्तम ( 5 या 11 बार), श्रीलक्ष्मी सहस्त्रनाम, विष्णु सहस्त्रनाम, श्रीदुर्गा सप्तशती का पांचवा या 11 वां अध्याय। नील सरस्वती स्तोत्र
(विद्यार्थियों के लिए), गणपति के लिए संकटनाशन स्तोत्र
मंत्र प्रतिष्ठान और खाता-बही पूजन-
ऊं श्रीं ह्रीं नम:
धन प्राप्ति
ॐ ह्रीं श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नम:
विद्या प्राप्ति
ॐ ऐं
व्यापार वृद्धि
ॐ गं गं श्रीं श्रीं श्रीं मातृ नम:
लक्ष्मी पूजन
ऊं सौभाग्यप्रदायिनी, रोगहारिणी, कमलवासिनी, श्रीप्रदायिनी महालक्ष्मये नम: 11 बार अवश्य पढ़ें