- मंजू रानी ने पिछले साल अपनी पहली वर्ल्ड बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में 48 किलो वेट कैटेगरी में सिल्वर मेडल जीता था
- कहा- 2 साल तक 48 किलो वेट कैटेगरी में ही खेलूंगी, इसके बाद 51 किलो वेट में शिफ्ट करूंगी, क्योंकि 48 किलो कैटेगरी ओलिंपिक में शामिल नहीं
मंजू रानी ने हाल ही में 48 किलो वेट कैटेगरी में दुनिया की दूसरे नंबर की मुक्केबाज बनीं। यह उनके करियर की बेस्ट रैंकिंग है। मंजू पिछले साल सीधे सीनियर नेशनल चैम्पियनशिप में पंजाब से खेलीं थीं और गोल्ड जीतने में कामयाब रहीं थीं। यह किसी भी ऐज ग्रुप में उनकी पहली नेशनल चैंपियनशिप थी। 20 साल की मंजू अपनी इस उपलब्धि से खुश हैं, लेकिन उनका टारगेट 2024 ओलिंपिक में देश के लिए मेडल जीतना है।
मंजू अभी दो साल 48 किलो वेट कैटेगरी में ही खेलेंगी। उसके बाद 51 किलो वेट कैटेगरी में शिफ्ट करेंगी, क्योंकि 48 किलो वेट कैटेगरी ओलिंपिक में शामिल नहीं है। उन्होंने अपने खेल, भविष्य और जिंदगी को लेकर भास्कर से खास बातचीत की…
आपने आगे क्या टारगेट फिक्स किया है?
मंजू: मेरा टारगेट 2024 ओलिंपिक है। मैं उसको ध्यान में रखकर ही अभ्यास कर रही हूं। मैं भारतीय टीम के कोच की निगरानी में फिलहाल फुटवर्क पर ध्यान दे रही हूं।
क्या भविष्य में किसी और वेट कैटेगरी में खेलेंगी?
मंजू: मैं दो साल तक अभी 48 किलो वेट कैटेगरी में ही खेलूंगी। दो साल बाद 51 किलो वेट में शिफ्ट करूंगी। क्योंकि 48 किलो वेट कैटेगरी ओलिंपिक में शामिल नहीं है।
आपने पंजाब से नेशनल क्यों खेला?
मंजू: हरियाणा से मौका नहीं मिल रहा था। 12वीं पास करने के बाद पंजाब के कॉलेज में मेरे अंकल ने एडमिशन करवा दिया था। पंजाब से सीनियर नेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप के लिए मेरा चयन 48 किलो वेट कैटेगरी में हुआ। यह किसी भी ऐज ग्रुप में मेरी पहली नेशनल चैम्पियनशिप थी। मैंने मौका का फायदा उठाया और गोल्ड जीतने के बाद मेरा सिलेक्शन इंडिया कैंप के लिए हुआ।
आपने 2017 में बॉक्सिंग छोड़ने का मन बनाया था, इसकी कोई खास वजह?
मंजू: हरियाणा में दो एसोसिएशन थी। मैं जिस एसोसिएशन की तरफ से राज्य के लिए खेलती थी, उसे नेशनल फेडरेशन की तरफ से मान्यता नहीं थी। ऐसे में मुझे नेशनल के लिए मौका नहीं मिल पा रहा था। मुझे लगा कि मेरा नेशनल चैम्पियनशिप में हिस्सा लेने का सपना अधूरा रह जाएगा। इसी वजह से मैंने 2017 में बॉक्सिंग को अलविदा कहने का मन बना लिया था, लेकिन मेरे अंकल ने समझाया कि घबराने से कुछ नहीं होता, मौका जरूर मिलेगा।
आप कबड्डी खेलती थी, फिर आप बॉक्सिंग में कैसे आई?
मंजू: जब मैं 10-11 साल की थी, तब मैंने रोहतक के अपने गांव रिठाल फोगाट में दूसरे बच्चों को देखकर कबड्डी खेलना शुरू किया, लेकिन मुझे इंडिविजुअल स्पोर्ट्स में जाना था। उसी समय हरियाणा सरकार की खेल योजना स्पोर्ट्स एप्टीट्यूट टेस्ट (स्पैट) के बारे में पता चला। हमारे गांव के 15-20 बच्चों ने इसे पास किया था।
इसके बाद हम पास के गांव में बॉक्सिंग की ट्रेनिंग करने लगे। वहां, सूबे सिंह बेनीवाल सर ने हमें खेल की बेसिक ट्रेनिंग दी। बाद में रोहतक में अपने पापा के दोस्त के पास चली गई। उन्होंने वहां बॉक्सिंग एकेडमी में एडमिशन करवाया।
पिता के देहांत के बाद आपको किन परेशानियों का सामना करना पड़ा?
मंजू: मेरे पिता सिक्योरिटी फोर्स में अधिकारी थे। साल 2010 में कैंसर के कारण उनकी मौत हो गई थी। उसके बाद मेरी मां इशवंती देवी के ऊपर ही हम पांच भाई-बहनों की जिम्मेदारी आ गई थी। मुझसे तीन बड़ी बहनें हैं, जिनकी शादी हो चुकी है, जबकि मुझसे छोटा एक भाई है। पापा के देहांत के बाद उनके पेंशन से काम चलता था। हम लोगों को दिक्कत न हो, इसलिए मां ने गांव में ही घर में कॉस्मेटिक की दुकान खोल ली थी। मां ने कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी। हमेशा सपोर्ट किया, ताकि मैं अपने लक्ष्य को पा सकूं।
वर्ल्ड चैंपियनशिप में आप गोल्ड से चूक गईं, क्या कमी रही?
मंजू: वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप के फाइनल में मेरा सामना रूस की बॉक्सर एकातेरिना पाल्तसिवा से था। वह काफी अनुभवी थी। मेरे पास वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप से पूर्व बड़े इंटरनेशनल टूर्नामेंट का कोई अनुभव नहीं था। मैं फुटवर्क में अच्छी नहीं थी। इस वजह से मुझे हार का सामना करना पड़ा।