सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं द्वारा हिंदू देवी-देवताओं की आकृतियों वाले सिक्कों की तस्वीरें इस दावे के साथ पोस्ट की गई कि इन्हें भारत में अपने शासन के दौरान तत्कालीन ईस्ट इंडिया कंपनी ने जारी किया था। साथ में साझा किये गए संदेश में लिखा है, “क्या आप जानते हैं कि ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा 1818 में दो आना का सिक्का जारी किया गया था; और आप सिक्के की दूसरी तरफ को देखकर चकित रह जाएंगे”। (अनुवाद)
कई फेसबुक उपयोगकर्ताओं द्वारा समान दावे के साथ इन तस्वीरों को पोस्ट किया गया है। कुछ उपयोगकर्ताओं ने इन सिक्कों के वीडियोभी साझा किए हैं।
इन सिक्कों के एक तरफ हिंदू धार्मिक प्रतीक कमल और ओम का चित्र हैं। सिक्के का मूल्य ‘2 आना’ बताया गया है, और इस पर ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ के अलावा वर्ष 1818 भी अंकित है। सिक्के के दूसरी तरफ भगवान राम के रूप में दिखाई गई एक रचना के साथ पांच आकृतियां हैं। सिक्के पर ‘श्री राम दरबार’ शब्द भी अंकित है
इन तस्वीरों को तमिल संदेश के साथ भी साझा किया गया है, जिसमें लिखा है, “முக்கிய செய்தி….. பகிரவும் அதிகம் 50 வருடம் ஆட்டம் போட்ட ஆட்டு மந்தைகளுக்கு இது சமர்ப்பணம் உன் பாட்டன் பூட்டன் காலத்திலே 2 நா நாணயத்தில் பிரிட்டிஷ் கவர்மெண்ட் கொடுத்த மகத்தான சாட்சி #இந்து_மதம் இது
@mkstalin மற்றும் ஓசி சோறு வீரமணி பல கிருஸ்துவ கம்பெனிக்கு சமர்ப்பணம்”।
முக்கிய செய்தி….. பகிரவும் அதிகம்
50 வருடம் ஆட்டம் போட்ட ஆட்டு மந்தைகளுக்கு இது சமர்ப்பணம்உன் பாட்டன் பூட்டன் காலத்திலே
2 நா நாணயத்தில் பிரிட்டிஷ் கவர்மெண்ட் கொடுத்த மகத்தான சாட்சி #இந்து_மதம்இது @mkstalin மற்றும் ஓசி சோறு வீரமணி பல கிருஸ்துவ கம்பெனிக்கு சமர்ப்பணம்
जैसा कि ऊपर के ट्वीट में देखा जा सकता है, बाईं ओर की तस्वीर में सिक्के पर कमल का चिह्न है, जबकि दाईं ओर के सिक्के में पाँच आकृतियां, साथ में नीचे ‘श्री राम दरबार’ शब्द अंकित हैं। तमिल संदेश के साथ ये तस्वीरें फेसबुक पर भी पोस्ट की गई हैं।
“प्रसारित तस्वीरें, काल्पनिक रचनाएं”
ऑल्ट न्यूज़ की तथ्य-जांच में पता चला कि प्रसारित तस्वीरें ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा बनाये गए सिक्कों की नहीं हैं। ऑल्ट न्यूज़ ने अधिक जानकारी के लिए मुद्रा शास्त्री और लेखक मोहित कपूर से इस विषय में बात की। श्री कपूर ओरिएंटल न्यूमिस्मैटिक सोसाइटी के दक्षिण एशियाई अध्याय के क्षेत्रीय सचिव हैं। उन्होंने कहा, “ये सभी काल्पनिक बातें हैं क्योंकि ईस्ट इंडिया कंपनी ने ऐसे कोई सिक्के नहीं बनवाए थे। इसके अलावा, इन सिक्कों पर दर्ज 1616, 1717और 1818 के वर्षों में सिक्के हाथों से बनते थे, जबकि प्रसारित इन सभी काल्पनिक सिक्कों के लिए मशीनों का उपयोग किया गया है। एक और बात जो इस बात को और ज़्यादा साफ करती है कि ये सब काल्पनिक हैं, वह इन सिक्कों पर अंकित मूल्य हैं। विशिष्ट मूल्य के सिक्के विशिष्ट धातुओं में बनाए जाते थे, 2आना चांदी में होता, तांबे में नहीं। तांबा-निकल मिश्रधातु में 2 आना के सिक्के बनने का सबसे शुरुआती उदाहरण 1919 में सामने आया, जिसको लेकर आम आबादी में बड़ा विरोध देखा गया क्योंकि उन्हें उस मूल्य के सिक्के में चांदी के सिक्के में उपयोग की आदत थी।” (अनुवाद)
ईस्ट इंडिया कंपनी के सिक्के
चूंकि प्रसारित तस्वीरें कंपनी द्वारा 1818 में जारी सिक्कों को दर्शाती हैं, इसलिए ईस्ट इंडिया कंपनी के सिक्कों की प्रकृति की पड़ताल के लिए हम 18वीं शताब्दी के अंतिम समय और 19वीं शताब्दी की शुरुआत को अपनी संबंधित समय मानकर चलेंगे।
रानी एलिज़ाबेथ प्रथम द्वारा 31 दिसंबर, 1600 को दिए गए शाही आदेश से ईस्ट इंडिया कंपनी ने वाणिज्यिक और शाही विस्तार की खोज शुरू की। 1757 में प्लासी के युद्ध में जीत के बाद कंपनी इस उपमहाद्वीप में सत्ता संभाली, और अंत में कलकत्ता, मद्रास और बॉम्बे प्रेसीडेंसी की स्थापना के साथ अपने शासन को मज़बूत किया। सिक्कों की ढलाई, नई विजय भूमि में संप्रभुता के प्रमाण के तौर पर काम करने व क्षेत्र के समेकन (एकीकरण) का तार्किक परिणाम थी। हालांकि, कंपनी का प्रारंभिक दृष्टिकोण असामान्य था। 18वीं सदी के अंत में और 19वीं सदी के शुरुआत में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा जारी किये गए सिक्कों में देशी शासकों के वर्चस्व को स्वीकार किया गया था। ये सिक्के फारसी या हिंदी सहित अन्य स्थानीय भाषाओं में अंकित थे, और मुगल सम्राट या अन्य देशी शासकों और राजकुमारों के नाम पर बनाए गए थे। विशेष रूप से बंगाल और बंबई प्रेसीडेंसी में यही बात देखने को मिली है। ईस्ट इंडिया कंपनी के तीन क्षेत्रों- मद्रास, कलकत्ता और बॉम्बे प्रेसीडेंसी से संबंधित तीन तरह की मुद्राएं प्रचलन में थीं, जहां कई शहरों में कंपनी ने टकसालों की स्थापना की गयी थी। 1835 के बाद ही सिक्कों की एक समान प्रणाली को अपनाया गया।
द न्यूमिस्मैटिक क्रॉनिकल एंड जर्नल ऑफ़ न्यूमिस्मैटिक सोसाइटी (चौथी श्रृंखला, खंड 3) में प्रकाशित जेएमसी जॉनसन के ‘ईस्ट इंडिया कंपनी के सिक्के’ शीर्षक आलेख में कहा गया है, “तीसरी अवधि में, जो 1765 में कंपनी के बंगाल में प्रशासन के साथ शुरू होता है, जब सम्राट शाह आलम का शासन विशुद्ध रूप से नाममात्र का रह गया था, तो प्रांतीय गवर्नरों द्वारा उनके नाम पर जारी सिक्कों, जो कंपनी के अधिकार के तहत स्थानीय नियंत्रण वाली टकसालों से जारी हुए, और कंपनी के अपने टकसालों में बने सिक्कों, के बीच अंतर करना मुश्किल हो गया था।” (अनुवाद)
नीचे, 18वीं सदी के अंतिम समय और 19वीं सदी के शुरूआत के ईस्ट इंडिया कंपनी के सिक्कों के कुछ चित्र, पोस्ट किए गए हैं। इन सिक्कों को बंगाल प्रेसीडेंसी में ढाला गया था। जैसा कि देखा जा सकता है, ये सिक्के फारसी, बंगाली और हिंदी भाषाओं के हैं। इन सिक्कों का मूल्य एक पैसा है। साथ ही, ये सिक्के — मशीन से बने सिक्कों का प्रतिनिधित्व करतीं वायरल तस्वीरों से विपरीत — स्पष्ट रूप से हाथ से बने हुए दीखते हैं। ये सिक्के तांबे के हैं।
जहां तक मद्रास प्रेसीडेंसी का संबंध था, कंपनी ने फारसी के अलावा तमिल और तेलुगु लिपियों वाले सिक्कों भी बनाए। जबकि बंगाल और बॉम्बे प्रेसीडेंसी ने मुगल सम्राट के नाम पर कई सिक्के बनाए, इसी अवधि में मद्रास प्रेसीडेंसी के कई सिक्कों में शाही कुल चिह्न और बेल (bale) के निशान थे, हालांकि बाद की अवधि में मुगल सम्राट के नाम पर सिक्के बनाए गए। दिलचस्प बात यह है कि कुछ सिक्कों पर गोपुरम (मंदिर का प्रवेश द्वार), तो कुछ पर विष्णु के चित्र बनाए गए थे।
अमेरिकन जर्नल ऑफ न्यूमिस्मैटिक्स में प्रकाशित ‘ग्रेट ब्रिटेन के तहत अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी के सिक्के’ शीर्षक के एक लेख में कहा गया है, “हालांकि, मद्रास प्रेसीडेंसी सिक्कों के रूप में धन का लेन-देन करने के लिए औपचारिक रूप से अधिकृत नहीं थी, फिर भी बॉम्बे आदेश द्वारा इसे कानूनी रूप देने से पहले ही उन्हें इसका विशेषाधिकार मान लिया गया था; 1677 में, उसी वर्ष के लिए, जिसमें आदेश प्रदान किया गया था, फोर्ट सेंट जॉर्ज में राष्ट्रपति और परिषद ने गोलकुंडा के राजा से रुपये और पैसे के सिक्के की अनुमति देने का आग्रह किया था, पैगोडा के सिक्के बनाना लाभदायक पाया गया था। यह तब सामने नहीं आया था जब पैगोडा का चलन शुरू हुआ- संभव है कि यह 1671के आसपास सामने आये।” (अनुवाद)
नीचे दी गई तस्वीर ऐसे एक सिक्के का प्रतिनिधित्व करती है; आगे के भाग में मंदिर गोपुरम (जिसे पगोडा भी कहते हैं) है, और पिछले भाग में विष्णु की आकृति चित्रित है। श्री कपूर ने ऑल्ट न्यूज़ से बातचीत में इसकी पुष्टि की। “बॉम्बे और कलकत्ता प्रेसीडेंसी ने मुगल सम्राटों के नाम पर चांदी के सिक्के बनाए, जबकि मद्रास प्रेसिडेंसी ने सोने और चांदी के सिक्के (बहुत संक्षिप्त अवधि के लिए) बनाए, जिनमें एक तरफ भगवान विष्णु के चित्र थे और दूसरी तरफ मंदिर गोपुरम के चित्र।”(अनुवाद) यह सिक्का चांदी का है, और इसका वजन 10 ग्राम का है।
इसलिए, 19वीं शताब्दी की शुरुआत में, जब मद्रास प्रेसीडेंसी ने गोपुरम और भगवान विष्णु वाले सिक्के बनाए गए थे, ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा जारी भगवान राम के चित्र वाले वैसे किसी सिक्के का उल्लेख ऑल्ट न्यूज़ को नहीं मिला, जैसा कि वायरल तस्वीरों में दिखाया गया है। प्रसारित तस्वीरें काल्पनिक रचनाएँ को दर्शाती हैं।
साभार- ऑल्ट न्यूज़