दाल चावल खाने वाले मगरमच्छ गंगाराम की मौत, अंतिम दर्शन को पूरा गांव उमड़ा, मंदिर बनायेंगे गांव वाले

Raipur :

छत्तीसगढ़, रायपुर के बेमेतरा जिला मुख्यालय से छह किलोमीटर दूर बसे गांव बावामोहतरा में दाल चावल खाने वाले मगरमच्छ गंगाराम की मौत हो गयी. गंगाराम की मौत पर पूरा इलाका गमजदा हो गया और पूरे गांव में मातम छा गया. गंगाराम की मौत पर पूरा गांव रो रहा है; और यह मगरमच्छ के आंसू नहीं हैं. असली आंसू हें. जान लें कि आखिर मगरमच्छ गंगाराम में ऐसी क्या बात थी कि ग्रामीणों का उससे इतना आत्मीय रिश्ता बन गया था. खबरों के अनुसार पिछले मंगलवार की सुबह अचानक गंगाराम पानी के ऊपर आ गया. जब मछुआरों ने पास जाकर देखा तो पाया कि गंगाराम की मौत हो चुकी है. उसके बाद गंगाराम का शव तालाब से बाहर निकाला गया; पूरे गांव में मुनादी करवाई गयी. पूरा गांव उसके अंतिम दर्शन के लिए उमड़ पड़ा; ग्रामीणों ने सजा-धजाकर ट्रैक्टर पर उसकी अंतिम यात्रा निकाली; गंगाराम को श्रद्धांजलि देने के लिए पूरा गांव जमा हो गया. दूर-दूर से लोग गंगाराम के अंतिम दर्शन के लिए पहुंचे; आमतौर पर तालाब में मगरमच्छ आने की खबर के बाद ही लोग वहां पर जाना छोड़ देते हैं. लेकिन गंगाराम के साथ ऐसा नहीं था; उसने कभी किसी भी ग्रामीण को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया.

मगरमच्छ गंगाराम को लोग घर से लाकर दाल चावल भी खिलाते थे

वहीं तालाब में नहाते समय जब लोग मगरमच्छ से टकरा जाते थे तो वह खुद दूर हट जाता था. तालाब में मौजूद मछलियां ही गंगाराम का आहार थी; मगरमच्छ गंगाराम को लोग घर से लाकर दाल चावल भी खिलाते थे और वह बड़े चाव से खाता था. गांव वालों के अनुसार गंगाराम ने कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया. जबकि तालाब का इस्तेमाल गांव के लोग निस्तारी के रूप में सालों से करते आ रहे हैं. गांववाले कहते हैं कि एक बार जरूर एक महिला पर गंगाराम ने हमला किया था लेकिन बाद में छोड़ दिया था. गंगाराम कभी-कभी तलाब के पार भी आकर बैठ जाता था. बारिश के दिनों में वह गांव की गलियों और खेतों तक पहुंच जाता था. कई बार खुद गांव वालों ने उसे पकड़कर तालाब में डाला है. जानकारी के अनुसार गंगाराम की आयु 100 साल से ज्यादा थी; ग्रामीणों ने बताया कि गंगाराम की उम्र करीब 125 साल थी; हालांकि इस बात के कोई साक्ष्य मौजूद नहीं हैं. इसका नाम गंगाराम कब और कैसे पड़ा इसकी भी कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं है.

बावामोहतरा में गंगराम की कहानी मशहूर है.   बावामोहतरा एक धार्मिक-पौराणिक नगरी के रूप में जिले के भीतर अपनी पहचान रखता है. गंगाराम की मौत की खबर मिलते ही वन विभाग की टीम पुलिस के साथ पहुंची. वन विभाग मगरमच्छ का पोस्टमार्टम करने के लिए ले जाने लगी.  लेकिन ग्रामीम गांव में ही पोस्टमार्टम कराये जाने की मांग करने लगे. कलेक्टर ने गंगाराम से गांववालों का लगाव देखकर अधिकारियों को गांव में ही पोस्टमार्टम करने की अनुमित दी; तालाब के किनारे  गंगाराम का पोस्टमार्टम हुआ.  फिर ग्रामीणों ने ढोल-मंजीरे के साथ गंगाराम की शवयात्रा निकाली और नम आंखों से तालाब के पास ही मगरमच्छ गंगाराम को दफना दिया. अब उसकी याद में गांव में मंदिर निर्माण कराया जायेगा.

जानकारी के अनुयसार इस गांव में महंत ईश्वरीशरण देव यूपी से आये थे जो एक सिद्ध पुरूष थे;  बताते हैं कि वही अपने साथ पालतू मगरमच्छ लेकर आये थे. उन्होंने गांव के तालाब में उसे छोड़ा था. वे इस मगरमच्छ को गंगाराम कहकर पुकारते थे.  उनके पुकारते ही मगरमच्छ तालाब के बाहर आ जाता था.

gfg

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *