स्मार्ट होम डिवाइस कैसे आपके ख़िलाफ़ इस्तेमाल हो सकते हैं

तकनीक ने इंसान की ज़िंदगी को बहुत आसान बना दिया है. दुनिया भर में लागू लॉकडाउन के इस दौर में तो ये तकनीकी उपकरण और भी कारगर साबित हुए हैं.

आज लगभग हम सभी के घरों में ऐसे स्मार्ट डिवाइस हैं जो हमारे इशारों पर काम करते हैं.

अलेक्सा से लेकर सिरी और गूगल होम तक, स्मार्ट लाइट बल्ब, सिक्योरिटी कैमरे और घर के तापमान नियंत्रित करने वाले थर्मोस्टेट इसकी मिसाल हैं.

इन्हें तकनीक की भाषा में इंटरनेट ऑफ़ थिंग कहते हैं (IoT). यहां तक कि हम अपनी रसोई में जिन उपकरण का इस्तेमाल करते हैं उनमें भी कई तरह के सेंसर लगे होते हैं.

कहा जा रहा है कि अगले दस साल में इनका इस्तेमाल और बढ़ने की संभावना है. लेकिन बहुत से लोग इन डिवाइस के बढ़ते इस्तेमाल से ख़ौफ़ज़दा हैं.

वो इन्हें जासूस कहते हैं. ऐप, या इंटरनेट से चलने वाली डिवाइस हमारे आदेशानुसार चलते हैं. हम इन्हें जो भी कमांड देते हैं वो इनमें स्टोर हो जाती हैं.

स्मार्ट डिवाइस

किस रूप में हो सकता है इस्तेमाल?

इस जानकारी का इस्तेमाल किसी भी रूप में किया जा सकता है.

एक रिसर्च तो ये भी कहती है कि स्मार्ट डिवाइस का इस्तेमाल घरेलू हिंसा को बढ़ावा दे रहा है और रिश्तों में कड़वाहट ला रहा है.

ख़ासतौर से स्मार्टफ़ोन का इस्तेमाल तो सबसे ज़्यादा ख़तरनाक है. इससे किसी भी इंसान की निजता पूरी तरह ख़त्म हो जाती है.

स्मार्टफ़ोन के लिए कई ऐसे ऐप हैं, जिनसे किसी भी शख़्स की जासूसी उसकी जानकारी के बिना हो सकती है.

बहुत से मां-बाप अपने बच्चों पर नज़र रखने के लिए इनका इस्तेमाल करते हैं. हमारे घरों में लगे कैमरे भी बाहर वालों के साथ-साथ घर वालों पर भी नज़र रखते हैं.

घर में कौन आया, किस कमरे में गया, कितनी देर वहां रहा सब कुछ आपको घर से दूर रहने पर भी पता चल जाता है.

यहां तक कि आप कब घर से बाहर निकले, कब घर के अंदर आए ये जानकारी भी आपके कैमरे में मौजूद रहती है जिसका इस्तेमाल किसी भी रूप में किया जा सकता है.

महिला

माइक्रोफ़ोन टेबलेट से पत्नी की जासूसी

अगर घर में इंटरनेट से चलने वाले ताले लगे हैं, तो घर से दूर रहने पर भी किसी को घर में बंद किया जा सकता है.

स्मार्ट डिवाइस बनाने वालों ने सोचा भी नहीं होगा कि इनका इस्तेमाल एक दूसरे की ज़िंदगी को नियंत्रित करने और उस पर नज़र रखने के लिए किया जा सकता है.

लेकिन ऐसा हो रहा है. इसकी मिसाल हम एक केस में देख भी चुके हैं.

ब्रिटेन में रॉस केयर्न्स नाम के एक व्यक्ति ने घर में तापमान नियंत्रित करने वाले माइक्रोफ़ोन टेबलेट से अपनी पत्नी की जासूसी की थी, जिसके जुर्म में उसे 11 महीने की सज़ा हुई थी.

ऐसे कई और मामले भी सामने आ चुके हैं. जानकारों का कहना है कि एक-दूसरे को बुरा-भला कहना, मारपीट करना रिश्तों में कड़वाहट लाने के पुराने तरीक़े हैं.

लेकिन स्मार्ट डिवाइस के ज़रिए जिस तरह के अपराध हो रहे हैं वो ज़्यादा ख़तरनाक हैं.

एक ही घर में जब तमाम स्मार्ट डिवाइस का कंट्रोल घर के किसी एक व्यक्ति के हाथ में होता है, तो वहां रहने वाले अन्य व्यक्तियों से नियंत्रण छिन जाता है.

वो जैसे चाहे इसका इस्तेमाल कर सकता है.

स्मार्ट डिवाइस

घरेलू हिंसा की बड़ी वजह भी

डिवाइस के ज़रिए की जाने वाली निगरानी धीरे-धीरे पीछा करने की सूरत अख़्तियार कर लेती है. घर में तकरार शुरू हो जाती है.

फिर ये तकरार किस हद तक पहुंचेगी, कहना मुश्किल है.

दुनिया भर में लगभग एक तिहाई महिलाओं ने अपने साथी से किसी ना किसी रूप में शारीरिक या यौन शोषण का अनुभव किया है.

इस तरह की हरकतें बच्चों में अवसाद, गर्भपात, जन्म के समय बच्चे का कम वज़न और एचआईवी के ख़तरे को बढ़ा देती हैं.

कुछ केस में तो तांक-झांक का सिलसिला क़त्ल पर जाकर रुकता है. चोरी छुपे किसी की ताक-झांक करना उसे मानसिक रूप से परेशान करना है.

दुनिया भर में 38 फ़ीसद महिलाओं का क़त्ल उनके मौजूदा या पुराने साथी के हाथों होता है.

जानकार कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर घरेलू हिंसा हमारी कल्पना से कहीं ज़्यादा होती है. ये एक वायरस की तरह है जो एक दूसरे से फैलता है.

 

मोबाइल

घरेलू हिंसा के मामलों में उछाल

2017 की एक स्टडी बताती है कि जो बच्चे अपने घरों में महिलाओं के साथ हिंसा देखते हैं बड़े होकर वो भी वैसा ही करते हैं.

लॉकडाउन के इस समय में भी घरेलू हिंसा के मामले बहुत ज़्यादा बढ़े हैं.

जानकारों ने ये भी चिंता ज़ाहिर की है कि अगर लॉकडाउन अगले 6 महीने के लिए बढ़ाया गया तो घरेलू हिंसा के मामलों में भयानक उछाल आएगा.

बहुत से लोग तो अभी ये भी नहीं जानते कि तकनीक से किस किस तरह से शोषण किया जा सकता है.

मिसाल के लिए जिस कमरे में आप सो रहे हैं, अचानक वहां का तापमान बढ़ा दिया जाए. इंटरनेट कनेक्टेड लॉक से आपको कमरे में बंद कर दिया जाए.

या आधी रात में आचानक डोर बेल बजा दी जाए. घर में घुसने वाले दरवाज़े का कोड आपको बताए बिना बदल दिया जाए.

ये सभी हरकतें आपको दिमाग़ी तौर पर परेशान करने वाली हैं और घरेलू हिंसा के दायरे में आती हैं. लेकिन अक्सर महिलाएं इस बारीकी को समझ नहीं पातीं.

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जासूसी कराने वाले दिमाग़ी मरीज़

साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट का कहना है कि अपने पार्टनर के मैसेज की तांकझांक, फ़ोन की लोकेशन ट्रैक करने वाले ऐप या पार्टनर के कैमरे में घुसने की इजाज़त देने वाली डिवाइस में 35 फ़ीसद का इज़ाफ़ा हुआ है.

दिलचस्प बात है कि जिसकी जासूसी की जाती है उसे पता भी नहीं होता. और उसके फ़ोन में ऐप डाल दिया जाता है.

ये सरासर किसी की निजता के अधिकार का हनन और एक बड़ा जुर्म है. लेकिन अफ़सोस की बात है कि ऐसे लोगों पर लगाम कसने के लिए बहुत कम हेल्पलाइन हैं.

ब्रिटेन में रिफ़्यूजी नाम की एक हेल्पलाइन है, जो ऐसे लोगों पर नज़र रखती है. लेकिन देखा गया है कि ऐसी हेल्पलाइन भी बहुत मददगार नहीं हैं.

वो सबसे पहले पीड़ित को पासवर्ड या डिवाइस बदलने का मशवरा देती हैं. और जब ऐसा होता है तो हालात और बिगड़ जाते हैं.

ऐसे जासूसी करने वाले पार्टनर से रिश्ता ख़त्म करके भी पिंड नहीं छूटता.

ज़िंदगी बचाने में मदद कर रही है ये ‘सेल्फ़ी’

क़ानून में बदलाव

दरअसल जो लोग इस तरह की जासूसी करते हैं वो एक तरह के दिमाग़ी मरीज़ होते हैं. अगर किसी शख़्स को अपने साथी पर शक है तो वो किसी भी हद तक जा सकता है.

ऐसे लोग सामने वाले की तकलीफ़ में अपनी ख़ुशी तलाशते हैं. अपने साथी से दूर होने के बाद भी वो उसे परेशान करते ही रहते हैं.

हालांकि ऐसे लोगों पर लगाम कसने के लिए क़ानून में बदलाव की बात हो रही है. ऐसी हरकत करने वालों को उनके अंजाम तक पहुंचाने के लिए कई संस्थाएं भी बन रही हैं.

तकनीक हमारी ज़िंदगी को आसान बनाने के लिए है. उसका इस्तेमाल उसी तरह से करना चाहिए न कि उसे हथियार बनाकर अपने ही रिश्तों को तार-तार किया जाए.

रिश्ते भरोसे की बुनियाद पर टिके होते हैं. अगर अपने ही साथी की जासूसी करनी पड़े तो फिर भरोसा कहां है?

भरोसा नहीं तो रिश्ता कैसा? किसी भी बुरे रिश्ते में क़ैद रहने से बेहतर है उससे आज़ाद हो जाना.

 

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