जानिए महाशिवरात्रि पर शिव पूजाविधि और सर्वश्रेष्ठ समय

महाशिवरात्रि के अवसर पर महादेव की आऱाधना करने से मानव के सभी पापों का नाश हो जाता है और उसको महादेव की कृपा मिलती है। भगवान आशुतोष अपने भक्त को मनचाहा वरदान देते हैं। कैलाशपति जंगली वनस्पतियों से प्रसन्न हो जाते हैं और भोले भक्तों का भंडार भर देते हैं। महाशिवरात्रि देवादिदेव महादेव की आराधना का सबसे उत्तम पर्व है। इस दिन की गई पूजा का सर्वोत्तम फल भक्त को प्राप्त होता है।

ऐसे करें शिवपूजा का प्रारंभ

महादेव की आराधना करने के लिए सबसे पहले स्नान आदि से निवृत्त होकर सफेद वस्त्र धारण करें। शिव आराधना में दिशा और समय का भी बड़ा महत्व रहता है। इसका ध्यान रखने से पूजा का पूरा फल मिलता है। शिवजी की पूजा सुबह पूर्व की ओर मुंह करके करना चाहिए। शाम के समय शिवजी की पूजा पश्चिम की ओर मुंह करके करना चाहिए। रात्रि में शिवजी की पूजा उत्तर दिशा की ओर मुंह करके करना चाहिए। पूजा आरंभ करने से पहले शिवपूजा का संकल्प लें। इसके लिए जल, फूल और चावल हाथ मे लेकर तिथि, वार, नाम, गोत्र आदि बोलकर जल को जमीन पर छोड़ दें। शिवालय में जाकर या घर में शिवलिंग पर जल चढ़ाएं। तांबे के लोटे में गंगाजल या पवित्र नदी का जल या शुद्ध जल लें। जल चढ़ाने के बाद शिवलिंग पर चंदन से त्रिपुण्ड बनाएं। अबीर, गुलाल, अक्षत, बेलपत्र, फूल, धतूरा, बेरफल, तुलसीदल, गाय का कच्‍चा दूध, शुद्ध घी, गन्‍ने का रस, ऋतुफल, पंच मेवा, पंचामृत, चंदन का इत्र, मौली, जनेऊ, फलों का रस, मिठाई, शमीपत्र, आंकड़ा आदि समर्पित करें।

निशीथ काल में शिवपूजन है सर्वश्रेष्ठ

महाशिवरात्रि का पूजन निशीथ काल में करना श्रेष्ठ फलदायी होता है। रात्रि का आठवें प्रहर को निशीथ काल कहा जाता है। वैसे यह पूरा दिन शिव को समर्पित है इसलिए किसी भी समय विधि-विधान से शिव आराधना की जा सकती है। पूजा करने के साथ शिवमंत्रों का जप करते रहना चाहिए। इससे भक्त स्वयं को शिव के ज्यादा नजदीक पाता है। गाय के घी का दीपक जलाएं और धूपबत्ती प्रज्जवलित करें। पूजा के समापन पर दीप से आरती करें और उसके बाद कर्पूर से आरती करें और उपस्थित शिवभक्तों में प्रसाद का वितरण करें।

महाशिवरात्रि तिथि और शुभ मुहूर्त

प्रारंभ – 21 फरवरी शुक्रवार को शाम 5 बजकर 20 मिनट से

समापन – 22 फरवरी शनिवार को सात बजकर 2 मिनट तक

महाशिवरात्रि उपवास

महाशिवरात्रि के दिन उपवास का भी बड़ा महत्व है। इस दिन शिवभक्त उपवास रखते हैं। मान्यता है कि इस दिन उपवास रखने से महादेव की कृपा प्राप्त होती है। उपवास करने के लिए एक दिन पहले से तैयारी कर लेना चाहिए। व्रत का संकल्प लेकर व्रत का प्रारंभ करना चाहिए और अपनी सामर्थ्य और श्रद्धा के अनुसार व्रत करा चाहिए। इससे भोले के भक्तों को उनकी कृपा प्राप्त होती है। व्रत के दिन फलाहार लिया जा सकता है।

महादेव की स्तुति

जय नाथ कृपासिन्धो जय भक्तार्तिभंजन।

जय दुस्तरसंसार-सागरोत्तारणप्रभो॥

प्रसीद मे महाभाग संसारात्र्तस्यखिद्यत:।

सर्वपापक्षयंकृत्वारक्ष मां परमेश्वर॥

शमी पत्र को चढ़ाने का मंत्र

अमंगलानां च शमनीं शमनीं दुष्कृतस्य च।

दु:स्वप्रनाशिनीं धन्यां प्रपद्येहं शमीं शुभाम्।।

बेलपत्र चढ़ाने का मंत्र

नमो बिल्ल्मिने च कवचिने च नमो वर्म्मिणे च वरूथिने च

नमः श्रुताय च श्रुतसेनाय च नमो दुन्दुब्भ्याय चा हनन्न्याय च नमो घृश्णवे॥

दर्शनं बिल्वपत्रस्य स्पर्शनम्‌ पापनाशनम्‌। अघोर पाप संहारं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्‌॥

त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुधम्‌। त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्‌॥

अखण्डै बिल्वपत्रैश्च पूजये शिव शंकरम्‌। कोटिकन्या महादानं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्‌॥

गृहाण बिल्व पत्राणि सपुश्पाणि महेश्वर। सुगन्धीनि भवानीश शिवत्वंकुसुम प्रिय।

।। रुद्राष्‍टकम ।।

नमामि शमीशान निर्वाण रूपं। विभुं व्यापकं ब्रम्ह्वेद स्वरूपं।

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाश माकाश वासं भजेयम।

निराकार मोंकार मूलं तुरीयं। गिराज्ञान गोतीत मीशं गिरीशं।

करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसार पारं नतोहं।

तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं। मनोभूति कोटि प्रभा श्री शरीरं।

स्फुरंमौली कल्लो लीनिचार गंगा। लसद्भाल बालेन्दु कंठे भुजंगा।

चलत्कुण्डलं भू सुनेत्रं विशालं। प्रसन्नाननम नीलकंठं दयालं।

म्रिगाधीश चर्माम्बरम मुंडमालं। प्रियम कंकरम सर्व नाथं भजामि।

प्रचंद्म प्रकिष्ट्म प्रगल्भम परेशं। अखंडम अजम भानु कोटि प्रकाशम।

त्रयः शूल निर्मूलनम शूलपाणीम। भजेयम भवानी पतिम भावगम्यं।

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी। सदा सज्ज्नानंद दाता पुरारी।

चिदानंद संदोह मोहापहारी। प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी।

न यावत उमानाथ पादार विन्दम। भजंतीह लोके परे वा नाराणं।

न तावत सुखं शान्ति संताप नाशं। प्रभो पाहि आपन्न मामीश शम्भो ।

रुद्राष्टकम मिदं प्रोक्तम विप्रेण हरतोषये। ये पठन्ति नरा भक्ता तेषां शंभु प्रसीदति।

।।इति श्री गोस्वामी तुलसीदासकृतं श्री रुद्राष्टकम श्री कपालेश्वर चरणार्पणमस्तु ।।

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