जानिए भारत की सबसे रहस्यमयी और खूबसूरत जगह ‘तवांग’ का इतिहास और अन्य रोचक बातें

‘तवांग’ भारत की सबसे खूबसूरत और रोचक जगहों में से एक है । इस जगह को रहस्यों की खदान भी कहा जाता है। वैसे तो यह जगह मठ होने की वजह से बहुत प्रसिद्ध है लेकिन यहां और भी कई सारी ऐसी बातें हैं, जगह हैं जो कि इसे अन्य दर्शनीय स्थलों से विचित्र बनाती है। अरुणाचल प्रदेश में स्थित तवांग मठ भारत का सबसे बड़ा और एशिया का दूसरा सबसे बड़ा मठ है। इस मठ का मुख्य आकर्षण यहां स्थित भगवान बुद्ध की 28 फीट ऊंची प्रतिमा और प्रभावशाली तीन तल्ला सदन है। मठ में एक विशाल पुस्तकालय भी है, जिसमें प्राचीन पुस्तक और पांडुलिपियों का बेहतरीन संकलन है। अगली स्लाइड्स के माध्यम से जानते हैं तवांग से जुड़ी अन्य रोचक बातें और इतिहास।

 

कथा
तवांग शब्द में ‘ता’ का अर्थ होता है- ‘घोड़ा’ और ‘वांग’ का अर्थ होता है- ‘चुना हुआ’।  पौराणिक कथाओं के अनुसार इस स्थान का चुनाव मेराग लामा लोड्रे ग्यामत्सो के घोड़े ने किया था। मेराग लामा लोड्रे ग्यामत्सो एक मठ बनाने के लिए किसी उपयुक्त स्थान की तलाश कर रहे थे। उन्हें ऐसी कोई जगह नहीं मिली, जिससे उन्होंने दिव्य शक्ति से मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करने का निर्णय लिया। प्रार्थना के बाद जब उन्होंने आंखे खोली तो पाया कि उनका घोड़ा वहां पर नहीं है। वह तत्काल अपना घोड़ा ढूंढने लगे। काफी परेशान होने के बाद उन्होंने अपने घोड़े को एक पहाड़ की चोटी पर पाया। इसी चोटी पर मठ का निर्माण किया गया और नामकरण किया गया।

 

त्योहार और संस्कृति
तवांग में मोनपा जनजाति रहती है। मोनपा समुदाय के त्योहार मुख्य रूप से कृषि और धर्म से जुड़े होते हैं। तवांग के मोनपा हर साल कई त्योहार मनाते हैं। इन्हीं में से एक है लोसर। यह नए साल का त्योहार है जिसे कि फरवरी अंत और मार्च की शुरुआत में मनाया जाता है। दूसरे त्योहारों में तोरग्या भी अहम है। इसे हर साल लुनार कैलेंडर के अनुसार 11वें महीने की 28वीं तारीख को मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह आमतौर पर जनवरी में पड़ता है।  ऐसा माना जाता है कि यह त्योहार उन दुष्ट आत्माओं को खदेड़ने के लिए मनाया जाता है, जो मनुष्य के साथ-साथ फसलों में भी बीमारियां पैदा करती हैं।

 

कला
तमांग की मोनपा जनजाति कला के क्षेत्र में बहुत ज्ञान और रुचि रखती है। यहां के लोगों ने थनका पेंटिंग और हाथ से बने पेपर के जरिए भी काफी नाम कमाया है। कहा जाता है इसमें इन्हें महारत हासिल है। इनकी कलाओं में लकड़ी का मुखौटा भी प्रमुख है। इसका इस्तेमाल तोरग्या त्योहार के दौरान तवांग मठ के प्रांगण में होने वाले नृत्य के दौरान किया जाता है। दोलोम एक कलात्मक रूप से डिजाइन किया गया खाने का बर्तन है, जिसका ढक्कन लकड़ी का बना होता है। शेंग ख्लेम एक लकड़ी का बना चम्मच है। ये सब भी यह लोग खुद से बनाते हैं।