तुसली बड़ी पवित्र एवं अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है | यह माँ के समान सभी प्रकार से हमारा रक्षण व पोषण करती है | हिन्दुओं के प्रत्येक शुभ कार्य में, भगवान के प्रसाद में तुसली-दल का प्रयोग होता है | जहाँ तुलसी के पोधे होते है, वहां की वायु शुद्ध और पवित्र रहती है | तुलसी के पत्तों में एक विशिष्ट तेल होता है जो कीटाणुयुक्त वायु को शुद्ध करता है | तुलसी की गंधयुक्त वायु से मलेरिया के कीटाणुओं का नाश होता है | तुलसी में एक विशिष्ट क्षार होता है जो दुर्गन्ध को दूर करता है । तुलसी पूजन से बुद्धिबल, मनोबल , चरित्रबल , व अरोग्यबल , बढ़ता है |
शास्त्रों में वर्णित तुलसी-महिमा
अनेक व्रत्कथाओं , धर्मकथाओं , पुराणों में तुलसी-महिमा के अनेक आख्यान हैं | भगवान विष्णु या श्रीकृष्ण की कोई भी पूजा-विधि ‘तुलसी-दल ’ के बिना परिपूर्ण नहीं मानी जाती | तुलसी के निकट जो भी मंत्र-स्तोत्र आदि का जप-पाठ किया जाता है , वह सब अंनत गुना फल देनेवाला होता है | प्रेत , पिशाच , ब्रह्मराक्षस , भूत आदि सब तुलसी के पौधे से दूर भागते है |
विज्ञान भी नतमस्तक
भारत के महान वैज्ञानिक श्री जगदीशचंद्र बसु ने ‘केस्कोग्राफ’ संयंत्र की खोज कर यह सिद्ध कर दिखाया कि वृक्षों में भी हमारी तरह चैतन्य सत्ता का वास होता है | इस खोज से भारतीय संस्कृति की ‘वृक्षोपासना’ के आगे सारा विश्व नतमस्तक हो गया | आधुनिक विज्ञान भी तुलसी पर शोध कर इसकी महिमा के आगे नतमस्तक है | तुलसी में विधुतशक्ति अधिक होती है | इससे तुलसी के पौधे के चारों और की २००-२०० मीटर तक की हवा स्वच्छ और शुद्ध रहती है | ग्रहण के समय खाद्य पदार्थो में तुलसी की पत्तियाँ रखने की परम्परा है | ऋषि जानते थे कि तुलसी में विधुतशक्ति होने से वह ग्रहण के समय फैलनेवाली सौरमंडल की विनाशकारी , हानिकारक किरणों का प्रभाव खाद्य पदार्थो पर नहीं होने देती | साथ ही तुलसी-पत्ते कीटाणुनाशक भी होते हैं |