प्रविश्य तु महारण्यं दण्डकारण्यमात्मवान्।
ददर्श रामो दुर्धर्षस्तापसाश्रममण्डलम्।।3.1.1।।
दंडक के खतरनाक जंगलों में प्रवेश करने के बाद, राम ने ऋषियों द्वारा बसाए गए कई आश्रमों को देखा। मुनियों के चमकीले वस्त्र, शुभ चिह्नों से युक्त और आकाश में सूर्य की तरह चमकने वाले आश्रम थे। आश्रमों का परिसर साफ-सुथरा, साफ-सुथरा था, मिट्टी को समतल और सींचा गया था, वे सभी प्राणियों के लिए सुलभ थे और वहाँ पक्षी और जानवर खुलेआम घूमते थे। आश्रमों में, बड़े-बड़े यज्ञ कुंड या यज्ञ वेदियाँ, घी के बर्तन और अग्नि में घी चढ़ाने के लिए करछुल, कुश घास, लकड़ी के टुकड़े, पवित्र जल के बर्तन, फल और जड़ें थीं। दिव्य नर्तकियों ने उन प्रांगणों में अपनी पूजा और प्रतिभा की पेशकश की। छाल के वस्त्र पहने हुए और फल और जड़ों पर निर्वाह करने वाले देदीप्यमान और संयमी संतों द्वारा वैदिक मंत्रों से गुंजायमान हो गए। चारों ओर कमल और कुमुदिनी सहित फूल बिखरे हुए थे। वेदों के पवित्र मंत्रों ने हवा भर दी और आश्रमों को ब्रह्मा के निवास के समान बना दिया। विद्वान, प्रतिबद्ध, तपस्वी ऋषियों ने निहारने के लिए एक दृश्य प्रस्तुत किया! राम ने उन्हें देखा और अपने शक्तिशाली धनुष की डोरी को विधिवत ढीला करने के बाद उनके पास पहुंचे।
हमारे राम… राम…राम…जय जय राम
हैं जगवंदन, पुरुषोत्तम हैं “भाँचा राम”– धन्य है ये धरा, जो श्री राम के चरणकमलों से सिंचित है, और ये सौभाग्य है हमारा, कि हम इस पावन भूमि का हिस्सा हैं।
– आइए छत्तीसगढ़ की धरा में पहली बार आयोजित हो रहे, #राष्ट्रीय_रामायण_महोत्सव में शामिल… pic.twitter.com/tDf2JOD6kv
— CMO Chhattisgarh (@ChhattisgarhCMO) May 31, 2023
अंबिकापुर और सूरजपुर में बिताए शुरू के 3 साल
सीतामढ़ी-हरचौका ( प्रवेश द्वार ) भगवान राम ने छत्तीसगढ़ में सीतामढ़ी-हरचौका से प्रवेश किया। भरतपुर के पास स्थित यह स्थान मवई नदी के तट पर है। यहां गुफानुमा 17 कक्ष हैं जहां रहकर श्रीराम ने शिव की आराधना की। हरचौका में कुछ समय बिताने के बाद वे मवई नदी से होते रापा नदी पहुंचे। यहां से सीतामढ़ी घाघरा पहुंचे। कुछ दिन यहां रुकने के बाद घाघरा से कोटाडोल पहुंचे। यहां से नेउर नदी तट पर बने छतौड़ा पहुंचे, जहां भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण ने पहला चातुर्मास बिताया।
रामगढ़ : छतौड़ा आश्रम से देवसील होकर रामगढ़ की तलहटी से होते तीनों सोनहट पहुंचे। यहां हसदो नदी का उद्गम होता है। इसके किनारे चलते हुए तीनों अमृतधारा पहुंचे। यहां कुछ दिन रहने के बाद जटाशंकरी गुफा फिर बैकुंठपुर होते पटना-देवगढ़ आए। आगे सूरजपुर में रेणु नदी के तट पर पहुंचे। फिर विश्रामपुर होते अंबिकापुर पहुंचे। पहले सारारोर जलकुंड फिर महानदी तट से चलते हुए ओडगी पहुंचे। यहां सीताबेंगरा और जोगीमारा गुफा में दूसरा चातुर्मास बिताया।
लक्ष्मणगढ़- धर्मजयगढ़: ओडगी के बाद हथफोर गुफा से होते तीनों लक्ष्मणगढ़ पहुंचे। फिर महेशपुर में ऋषियों का मार्गदर्शन लेते चंदन मिट्टी गुफा पहुंचे। रेणु नदी के तट से होते हुए बड़े दमाली व शरभंजा गांव आए। यहां से मैनी नदी व मांड नदी तट से होते देउरपुर आए। रक्सगंडा में हजारों राक्षसों का वध किया। फिर किलकिला में तीसरा चातुर्मास बिताया। राम धर्मजयगढ़ पहुंचे। इसके बाद अंबे टिकरा होते हुए चंद्रपुर आए। इस तरह सरगुजा व जशपुर क्षेत्र में तीन साल बीता।
मध्य छत्तीसगढ़ में बिताए पांच साल
वाल्मीकि आश्रम : चंद्रपुर के बाद राम शिवरीनारायण पहुंचे। यहां चौथा चौमासा बिताया। इसके बाद खरौद फिर वहां से मल्हार गए। यहां से महानदी के तट पर चलते हुए आगे बढ़े और धमनी, नारायणपुर होते हुए तुरतुरिया स्थित वाल्मिकी आश्रम पहुंचे। कछ दिन यहां बिताने के बाद सिरपुर आए। यहां से आरंग होते हुए फिंगेश्वर के मांडव्य आश्रम पहुंचे। इसके बाद चंपारण्य होते हुए कमलक्षेत्र राजिम पहुंचे। यहां से पंचकोशी तीर्थ की यात्रा करते हुए आगे बढ़े और मगरलोड से सिरकट्टी आश्रम होते हुए मधुवन पहुंचे। यहां से देवपुर गए। फिर रुद्री और पांडुका होते हुए अमरतारा में अत्रि ऋषि का आश्रम पहुंचे। फिर रुद्री, गंगरेल होते हुए दुधावा होकर देवखुंट और फिर सिहावा पहुंचे।
सिहावा में बीता ज्यादा समय : शोध के नेतृत्वकर्ता डॉ. मन्नूलाल यदु का दावा है कि धमतरी जिले के पास नगरी सिहावा में राम का सबसे ज्यादा समय बीता है। इसके पीछे उनका तर्क है कि सिहावा में रहने वाले ऋषि श्रृंगी दशरथ की दत्तक पुत्री शांता के पति थे। यह स्थान उनके जीजाजी का रहा है। यहां स्थित शांता गुफा इसका प्रमाण है।
पहुंचे बस्तर वाले क्षेत्र, गुजारे 4 साल
कांकेर- जगदलपुर: मध्य छत्तीसगढ़ में करीब पांच साल बिताने के बाद प्रभु राम कंक ऋषि के आश्रम की ओर बढ़े। वर्तमान में यह इलाका कांकेर कहलाता है। वहां से केशकाल की तराई से गुजरते हुए धनोरा पहुंचे। यहां सैकड़ों राक्षसों का वध करने के बाद नारायणपुर होते हुए छोटे डोंगर पहुंचे। यहां से बारसूर होते हुए चित्रकोट गए। यहां चौमासा बिताने के बाद इंद्रावती नदी के तट पर बसे गांव नारायणपाल गए। यहां से जगदलपुर होते हुए गीदम पहुंचे।
दंतेवाड़ा-सुकमा: गीदम से वे शंखनी और डंकनी नदी के तट पर बसे दंतेवाड़ा पहुंचे। यहां से कांकेर नदी के तट से होते हुए आगे बढ़े और तीरथगढ़ पहुंचे। यहां से कुटुंबसर गए। यहां से आगे बढ़कर सुकमा होते हुए वे रामारम पहुंचे। इसके बाद कोंटा और शबरी नदी के तट से होते हुए इंजरम पहुंचे। यहां से आगे बढ़े तो छत्तीसगढ़ और आंध्रप्रदेश के तटवर्ती इलाके कोलावरम पहुंचे। यहां से आगे बढ़े तो भद्राचलम पहुंचे जो छत्तीसगढ़ में उनका आखिरी पड़ाव था, इसके बाद वे दक्षिणापथ की ओर बढ़ गए।