बोम्मई केस से उत्तराखंड-कर्नाटक तक…फ्लोर टेस्ट को लेकर ये रहे सुप्रीम कोर्ट के फैसले

महाराष्ट्र में जारी सियासी संकट पर हर किसी की नज़र है. देवेंद्र फडणवीस ने अचानक मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली, जिसने हर किसी को चौंका दिया. विपक्षी पाले में खड़ी शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी ने सरकार बनाने के इस तरीके पर सवाल खड़े किए और राज्यपाल के आदेश के खिलाफ सर्वोच्च अदालत का दरवाजा खटखटा दिया. सोमवार को अदालत इस मामले में फैसला सुना सकती है, ऐसे में अब हर किसी की नज़र SC पर हैं.

ऐसा पहली बार नहीं है जब इस तरह की परिस्थिति अदालत में खड़ी हुई हो, इससे पहले भी कई ऐसे मामले सामने आ चुके हैं जिसमें सुप्रीम कोर्ट की ओर से आदेश देकर सियासी संकट को खत्म किया गया है. ऐसे ही कुछ मामलों में नज़र डालिए…

2018 कर्नाटक का येदियुरप्पा केस 

अभी हाल ही में कर्नाटक में जब सियासी संकट सामने आया तब भी अदालत ने फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया था. कांग्रेस पार्टी ने विधायकों की खरीद-फरोक्त की शिकायत की थी और मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया था. 17 मई 2018 को बीएस. येदियुरप्पा ने सीएम पद की शपथ ली और सुप्रीम कोर्ट ने 48 घंटे के अंदर येदियुरप्पा को विधानसभा में बहुमत साबित करने को कहा था.

2016 में उत्तराखंड सरकार का उदाहरण

2016 में उत्तराखंड में जब सियासी संकट पनपा था तो केंद्र सरकार की ओर से यहां राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था. जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा था, सर्वोच्च अदालत ने तब हरीश रावत की सरकार को विधानसभा में बहुमत साबित करने का मौका दिया था. जब फ्लोर टेस्ट हुआ तो 61 में से 33 विधायक हरीश रावत के पक्ष में आए थे और राज्य से राष्ट्रपति शासन हट गया था.

1998 जगदंबिका पाल का मामला

1998 में जगदंबिका पाल वाले मामले में भी सर्वोच्च अदालत ने तब फ्लोर टेस्ट का ही आदेश दिया था. अदालत की ओर से 48 घंटे में बहुमत साबित करने को कहा था, ये मामला जगदंबिका पाल बनाम कल्याण सिंह का था.

1994 एस आर बोम्मई केस Vs भारत सरकार

90 के दशक में सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक से सामने आए एक ऐसे ही मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया था, जिसमें कहा गया था कि सदन में बहुमत साबित करना ही अल्टीमेट टेस्ट होता है. दरअसल, एस.आर. बोम्मई कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे, लेकिन 1989 में बहुमत ना होने के आधार पर राज्यपाल ने उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया था और राष्ट्रपति शासन को लागू कर दिया गया था.

इसी के खिलाफ बोम्मई पहले हाईकोर्ट गए और बाद में सुप्रीम कोर्ट. सर्वोच्च अदालत ने 11 मार्च 1994 को 9 जजों की बेंच ने दिए अपने फैसले में एस.आर. बोम्मई को दोबारा सरकार बनाने को कहा था और कहा था कि राज्यपाल विधानसभा को तभी भंग कर सकते हैं, जब विधानसभा से संवैधानिक प्रावधानों को निलंबित न कर दिया जाए.

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